NCISM का नया आदेश: नीट अनिवार्य लेकिन न्यूनतम अंक की शर्त खत्म

MP News: भारतीय चिकित्सा पद्धति राष्ट्रीय आयोग (NCISM) नई दिल्ली ने सत्र 2025-26 के लिए नया आदेश जारी किया है। अब आयुर्वेद मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश केवल नीट (NEET) के जरिए ही होगा, जबकि 12वीं कक्षा में न्यूनतम अंक प्रतिशत की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। इससे हज़ारों छात्रों को राहत मिलेगी, लेकिन नीट क्वालिफाई करना अब भी ज़रूरी रहेगा।
केवल नीट के जरिए होगा प्रवेश, 12वीं पास होना ही काफी
NCISM के सचिव सच्चिदानंद प्रसाद ने हाल ही में पत्र जारी कर स्पष्ट किया है कि आयुर्वेद मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए दो मुख्य शर्तें हैं। पहली, उम्मीदवार का 12वीं (10+2) या समकक्ष परीक्षा फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी/बायोटेक्नोलॉजी विषयों के साथ उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। दूसरी, नीट 2025 के परिणामों के आधार पर मेरिट से दाखिला होगा। पहले सामान्य वर्ग के लिए 50% और SC, ST, OBC वर्ग के लिए 40% न्यूनतम अंक ज़रूरी थे, पर अब यह शर्त हटा दी गई है। इस बदलाव से छात्रों के मन में उठ रहे भ्रम को भी दूर किया गया है। आयुष मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. राकेश पाण्डेय ने कहा कि छात्रों को घबराने की ज़रूरत नहीं है, केवल नीट पास करना और 12वीं उत्तीर्ण होना पर्याप्त रहेगा।
नीट 2025: लाखों छात्रों की उम्मीदें और कॉलेजों की स्थिति
नीट 2025 में देशभर से 22 लाख से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया था। फिलहाल भारत में 598 आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें लगभग 40,000 सीटें उपलब्ध हैं। इनमें से 15% सीटें अखिल भारतीय कोटा (AIQ) के तहत भरी जाती हैं, जबकि बाकी राज्य स्तरीय काउंसलिंग से होती हैं। छत्तीसगढ़ में आयुर्वेद कॉलेजों की संख्या कम है, लेकिन मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में कई प्रतिष्ठित संस्थान हैं, जहाँ हर साल बड़ी संख्या में छात्र दाखिला लेते हैं।
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आयुर्वेद शिक्षा का विस्तार और भविष्य की चुनौतियाँ
आयुर्वेद भारत की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति है, जो हाल के वर्षों में युवाओं के बीच भी लोकप्रिय हो रही है। केंद्र सरकार की आयुष मंत्रालय और NCISM लगातार इसे मानकीकृत और आधुनिक बनाने पर काम कर रही है। नीट के ज़रिए दाखिले की व्यवस्था का मकसद यही है कि इस क्षेत्र में केवल योग्य और प्रतिभाशाली छात्र ही आएं। हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों में कॉलेजों की कम संख्या और बुनियादी सुविधाओं की कमी अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसके बावजूद, सरकार की कोशिश है कि आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाई जाए।